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भारत में अंदरूनी प्रवासन (Migration in India)

भारतीय जनगणना (Indian census) प्रवास को एक भौगोलिक स्थान से दूसरे स्थान पर जनसंख्या की स्थानिक गतिशीलता के रूप में परिभाषित करती है।

कार्यात्मक जनसांख्यिकीय चरों की तरह, प्रवासी डेटा की पूरी श्रृंखला जनगणना रिपोर्ट से ली गई है। इसलिए, दो जनगणनाओं के बीच एक दशक के समय के अंतराल के कारण, प्रवासी डेटा केवल ऊपरी-तौर का विश्लेषण करने में ही मदद कर सकता है, दो जनगणनाओं के बीच की छोटी-मोटी गतिविधियों की अनदेखी करते हुए।

प्रवासन डेटा का पता 1781 की सबसे पुरानी जनगणना से भी लगाया जा सकता है। हालाँकि, व्यावहारिक, विश्वसनीय डेटा बेस केवल 1961 की जनगणना और उसके बाद से ही बनाया गया था। इस जनगणना में, ‘जन्म स्थान से प्रवासन (migration from the place of birth)’ एक नया पैरामीटर था।

बाद की जनगणना (1971) में, ‘जन्म स्थान से प्रवासन’ के खंड को बनाए रखने के अलावा, ‘अंतिम निवास के स्थान से प्रवासन (migration from place of last residence)’ जोड़ा गया था।

1981 की जनगणना के बाद से ही डेटा संग्रह के विश्लेषण में प्रवासन के कारण भी शामिल किये गए थे।

2011 की जनगणना की डेटा तालिका, और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (national sample survey organization) डेटा 2008 के अनुसार, देश में प्रवास का प्रमुख कारण रोजगार है। आंकड़ों के संयुक्त विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि देश में कुल आबादी का लगभग 30% प्रवासी हैं।

महिला आबादी की बात करें तो, 91% तक ग्रामीण महिला प्रवासी और 61% शहरी महिला प्रवासी विवाह के कारण प्रवास करती हैं।

अंतर-राष्ट्रीय (intra-national) परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण किए गए प्रवास के रुझान, क्षेत्रीय प्रवासी प्रोफ़ाइल की विस्तृत श्रृंखला को प्रकट करते हैं। दो डेटाबेस में रुझानों के विश्लेषण से निम्नलिखित प्रवासी पैटर्न का पता चलता है:

  • क्षेत्रीय प्रवासन (Regional Migration): अंतर्राज्यीय (Inter-state) और अंतर-र्राज्यीय (Intra-state)। प्रवासियों की अधिकतम संख्या अंतर-क्षेत्रीय (Intra-regional) विशेषताओं को दर्शाती है, इसके बाद अंतरछेत्रीय (Inter-regional) विशेषताएँ हैं।
  • सेक्टोरल प्रवासन (Sectoral Migration): इंटर (ग्रामीण-शहरी प्रवास, शहरी-ग्रामीण प्रवास), और इंट्रा (शहरी-शहरी प्रवास, ग्रामीण- ग्रामीण प्रवास)

ग्रामीण-ग्रामीण प्रवास, ग्रामीण-शहरी प्रवास, शहरी-शहरी प्रवास, और शहरी-ग्रामीण प्रवास, महत्व के घटते क्रम में महत्वपूर्ण प्रवासी पैटर्न हैं।

आइए अब इनका अधिक विस्तार से अध्ययन करें।

ग्रामीण–ग्रामीण प्रवास (Rural–Rural Migration)

यह अंतर-क्षेत्रीय प्रवास (intra-sectoral migration) देश के सबसे प्रमुख प्रवासी आवाजाही का निर्माण करता है। इस प्रवास का कारण बड़े पैमाने पर एक क्षेत्र के भीतर या क्षेत्रों के बीच कृषि विकास के स्तरों में भिन्नता है। प्रवासन की यह श्रेणी मजबूत अंतर-क्षेत्रीय (intra-regional) विशेषताओं वाले खेतिहर मजदूरों की आवाजाही को दर्शाती है।

प्रमुख उदाहरणों में निम्नलिखित प्रवासी आवाजाही हैं:

  • यू.पी. में अवध के मैदानों से लेकर रोहिलखंड के मैदानों तक।
  • राजस्थान और भारतीय रेगिस्तान से बनास-चंबल घाटी तक।
  • सूखा-प्रवण, पठारी आंतरिक भाग से लेकर आंध्र प्रदेश और ओडिशा के डेल्टाई मैदानों तक।

इन अंतर-क्षेत्रीय (intra-regional) प्रवासन की तुलना में, अंतरक्षेत्रीय (inter-regional) प्रवास कम तीव्रता और मात्रा को प्रकट करता है, लेकिन इसमें गंतव्य स्थानों के रूप में कृषि रूप से विकसित स्थान शामिल हैं - पंजाब, हरियाणा, असम, आंध्र प्रदेश के डेल्टा मैदानी इलाके। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे भारी जनसांख्यिकीय लोड वाले राज्य स्रोत क्षेत्रों के रूप में काम करते हैं।

ग्रामीण-शहरी प्रवास (Rural–Urban Migration)

यह अंतर-क्षेत्रीय प्रवास 1981 की जनगणना तक देश के आंतरिक प्रवास का सबसे प्रमुख प्रकार था।

ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लाभों के कारण, यह प्रवासी प्रवृत्ति 1991 की जनगणना के बाद से दूसरे स्थान पर आ गई। यहाँ अंतर-क्षेत्रीय (intra-regional) प्रवास और अंतरक्षेत्रीय (inter-regional) प्रवास की समानता है।

इस अंतरक्षेत्रीय प्रवास (inter-sectoral migration) का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख उदाहरणों में देश के मेगासिटी हैं, विशेष रूप से ग्रेटर मुंबई, NCT, चेन्नई, गंतव्य के रूप में (महत्व के घटते क्रम में)।

अंतर-क्षेत्रीय (intra-regional) परिप्रेक्ष्य में, किसी भी राज्य की मेगासिटी बड़े पैमाने पर ग्रामीण आबादी के प्रवास का गंतव्य बनती है।

ग्रामीण-शहरी प्रवास को अक्सर शहरी समस्याओं की पूरी श्रृंखला के मूल कारणों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है, और साथ ही गावों में कार्यबल की गिरावट के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की घटती आर्थिक क्षमता के रूप में भी।

पुरुष मुख्य रूप से आर्थिक/रोजगार कारणों से ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में अंतर-राज्यीय प्रवासन (inter-state migration) करते हैं।

अन्य क्षेत्रीय प्रवास शहरी-शहरी और शहरी-ग्रामीण हैं। वे पूर्ववर्ती उदाहरणों की तुलना में प्रवासी प्रवृत्तियों के कमजोर प्रोफाइल का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शहरी-शहरी प्रवास (Urban-Urban migration)

अर्थव्यवस्था से संबंधित आवागमन का विस्तार देश के सभी शहरी क्षेत्रों में देखा जा सकता है (ज़ेलिंस्की/Zelinsky)। यह प्रवासी प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों की उच्च वर्ग श्रेणी की संख्या में निरंतर वृद्धि के साथ-साथ, निम्न वर्ग श्रेणी की संख्या में कमी के साथ अपनी छाप को दर्शाती है।

शहरी-ग्रामीण प्रवास (Urban-Rural migration)

डेटा तालिकाओं से प्राप्त सूचना के अनुसार, काफी वृद्ध आबादी अपनी व्यावसायिक बाध्यताओं के पूरा होने के बाद अपने मूल स्थान पर वापस चली जाती है। अंतर-राष्ट्रीय प्रवास (intra-national migration) की इस सबसे कमजोर प्रवृत्ति (trend) का अखिल भारतीय प्रोफ़ाइल है।

भारत में प्रवास के पैटर्न (Patterns of Migration in India)

देश में प्रवास की निरंतर प्रवृत्तियाँ पाँच प्रमुख विशेषताओं को दर्शाती हैं:

  • देश के उत्तरी मैदान के सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य यू.पी. और बिहार, सभी प्रकार के आंतरिक प्रवासों के लिए प्रमुख स्रोत क्षेत्र हैं।
  • आर्थिक रूप से विकसित, और इस प्रकार आकर्षक और निकटवर्ती स्थान, महाराष्ट्र, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT), गुजरात और हरियाणा प्रमुख गंतव्य हैं।
  • दक्षिणी प्रायद्वीपीय राज्य, विकास के अपने मजबूत आर्थिक स्तर और संबंधित आकर्षण के बावजूद, अंतर-क्षेत्रीय प्रवास में स्थिर विशेषताओं को प्रकट करते हैं क्योंकि सांस्कृतिक और भौगोलिक दूरी उनके और प्रमुख स्रोत क्षेत्रों के बीच बनी रहती है।
  • सुदृढ़ कृषि और औद्योगिक आधार के साथ महत्वपूर्ण गंतव्य के रूप में पश्चिम बंगाल का महत्व लगातार घट रहा है, जो वैश्वीकरण की आवश्यकता के साथ तालमेल रखने में राज्य की विफलता को प्रकट करता है। यह गिरावट असम के महत्व में वृद्धि के साथ-साथ हो रही है, जो एक बढ़ता हुआ कृषि केंद्र है।
  • देश के भौगोलिक प्रतिकूल स्थान, प्रतिकूल जलवायु के संयोजन में, अलग-अलग क्षेत्रों का निर्माण करते हैं, जो पूरी तरह से अंतरक्षेत्रीय प्रवास (inter-regional migrations) से वंचित हैं, जैसे कि भारतीय रेगिस्तान, लवण कच्छ (नमक दलदल, Salt marshes, रेह), अंडमान और निकोबार द्वीप, पूर्वी हिमालय और ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र।

प्रवासन के कारण (Causes of Migration)

प्रवास के कारणों को दो मुख्य श्रेणियों में रखा जा सकता है:

  • धक्का/पुश कारक (Push factors): वे कारक जो लोगों को अपना निवास स्थान या मूल स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं, उदा. प्राकृतिक आपदाएं, गरीबी, धार्मिक असहिष्णुता, आदि।
  • खींच/पुल कारक (Pull factors): वे कारक जो लोगों को कुछ निश्चित स्थानों की ओर आकर्षित करते हैं, उदा. आर्थिक अवसर, पानी, आदि।

भारत में, प्रमुख धक्का/पुश कारक हैं:

  • गरीबी, भूमि पर जनसंख्या का उच्च दबाव और बुनियादी ढांचागत सुविधाओं (स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आदि) की कमी ग्रामीण लोगों को शहरी क्षेत्रों में प्रवास करने के लिए मजबूर करती है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ (जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवाती तूफान, भूकंप, सुनामी, आदि)
  • युद्ध और स्थानीय संघर्ष। उदाहरण के लिए, धार्मिक असहिष्णुता, आतंकवाद और दंगों के कारण कश्मीरी हिंदुओं का आंतरिक प्रवास।

भारत में, प्रमुख पुल कारक हैं:

  • बेहतर आर्थिक अवसर, नियमित काम की उपलब्धता और अपेक्षाकृत अधिक मजदूरी, ग्रामीण लोगों को शहरी क्षेत्रों में प्रवास के लिए आकर्षित करती है।
  • बेहतर सामाजिक बुनियादी ढांचा (बेहतर स्कूल और कॉलेज, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं)
  • मनोरंजन के अधिक विविध और बेहतर स्रोत।

एक और बात है जिसे हमें ध्यान में रखने की आवश्यकता है - प्रवास के कारण दोनों लिंगों में भिन्न हो सकते हैं।

पुरुषों और महिलाओं के प्रवास के अंतर्निहित कारणों में अंतर

  • आर्थिक कारण, जैसे नौकरी और व्यवसाय, पुरुष प्रवास का मुख्य कारण हैं। 38% पुरुष और केवल 3% महिलाएं इस कारण से प्रवास करती हैं।
  • विवाह महिलाओं के प्रवास का प्रमुख कारण है। 65% महिलाएं और केवल 2% पुरुष इस कारण से प्रवास करते हैं। मेघालय जैसे कुछ मातृ समाजों को छोड़कर, जहां पुरुष विवाह के बाद प्रवास करते हैं, ग्रामीण भारत में महिला प्रवास का यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है।
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