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प्रवास सम्बंधित सिद्धांत (Basic concepts related to Migration)

प्रवास नामक सांस्कृतिक, कार्यात्मक जनसांख्यिकीय चर (demographic variable) एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जनसंख्या की भौगोलिक गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करता है।

चूंकि यह स्थानिक गतिशीलता दो भौगोलिक स्थानों पर एक साथ अपना प्रभाव दर्ज करती है, इसलिए इसे प्रजनन क्षमता और मृत्यु दर से भी अधिक प्रमुख भौगोलिक चर माना जाता है।

यह कार्यात्मक चर संबंधित है:

  • स्रोत क्षेत्र से - जहां पुश/धक्का कारक (push factors) काम कर रहे हो सकते हैं
  • गंतव्य से - जहां पुल कारक (pull factors) काम कर रहे हो सकते हैं

हालांकि पुश और पुल दोनों कारकों को बोधगम्य (perceptional) माना जाता है। इसी के अनुसार प्रवासी अध्ययनों में व्यवहार केन्द्रित प्रवास को भी एक वैध घटक के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।

पूर्व-पश्चिम जनसंख्या अध्ययन केंद्र (East-West Population Study Centre), होनोलूलू के अनुसार, प्रवासन में एक सप्ताह से अधिक समय के निवास परिवर्तन को ही शामिल किया जाता है। इसमें कई प्रकार शामिल हैं, जिनमे निम्नलिखित आधार पर भेद किया गया है:

  • समय - स्थायी और अस्थायी।
  • कारण - मुख्य रूप से आर्थिक और सांस्कृतिक।
  • दूरी - अंतर्राष्ट्रीय (International) और इंट्रा-नेशनल (Intra-national)

मानव भूगोल में प्रवास का विश्लेषण तीन प्रमुख विद्वानों रेवेनस्टीन, एवरेट ली और ज़ेलिंस्की के कार्यों से संबंधित है।

रेवेनस्टीन के प्रवासन सिद्धांत

रेवेनस्टीन (Ravenstein) को प्रवासन के सिद्धांतों के पहले प्रमुख प्रतिपादक के रूप में जाना जाता है| उनका विश्लेषण 1885 - 1889 के बीच अटलांटिक में मौजूद अंतर-राष्ट्रीय प्रवासी प्रवृत्तियों पर आधारित था।

मौजूदा प्रवृत्तियों के विश्लेषण के आधार पर, रेवेनस्टीन ने प्रवासन पर कुछ स्व-परिभाषित सिद्धांत बनाये, जो वर्तमान प्रोफ़ाइल में भी वैध हैं। ये सिद्धांत निम्नलिखित बातों पर प्रकाश डालते हैं:

  • अधिकांश प्रवास छोटी दूरी के लिए होता है (दूरी क्षय प्रभाव / Distance Decay Effect)
  • दूरी बढ़ने के साथ गंतव्य का आकर्षण कम होता जाता है। (गुरुत्वाकर्षण कानून / Gravity Law)
  • बड़े शहर आप्रवास (immigration) के कारण बढ़ते हैं।
  • प्रवास का मुख्य कारण आर्थिक होता है।
  • वयस्क, परिवार के बाकी सदस्यों से अधिक प्रवास करते हैं।
  • महिलाएं कम दूर प्रवास करती हैं, जबकि पुरुष ज्यादा दूर प्रवास करते हैं।
  • प्रत्येक प्रमुख प्रवासी प्रवाह में, एक कमजोर और विपरीत प्रवासी प्रवाह भी होता है।
  • प्रवास कदम दर कदम आगे बढ़ता है।

एवरेट ली की माइग्रेशन थ्योरी

रेवेनस्टीन के दृष्टिकोण को 1965 में एवरेट ली (Everett Lee) द्वारा ‘प्रवासन की अवधारणा (Concept of Migration)’ नामक एक सिद्धांत के रूप में समेकित (consolidated) किया गया था। अपनी अवधारणा में, ली ने जोर दिया कि प्रवासी निर्णय 4 कारकों की एक परस्पर क्रिया प्रतीत होते हैं:

  • उत्पत्ति के स्थान पर कार्य करने वाले कारक
  • गंतव्य स्थान पर कार्य करने वाले कारक
  • कारक जो बीच में आने वाली बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं
  • कारक जो उस व्यक्ति के लिए विशिष्ट (specific) हैं

ली के अनुसार, प्रवासी निर्णय (migratory decision) लेने और लागू होने के लिए, गंतव्य पर काम करने वाले कारक बाकी सब पर भारी पड़ने चाहियें - यानि, स्रोत क्षेत्र में काम करने वाले कारक, बीच में आने वाली बाधाएं, और व्यक्तिगत विशिष्ट आवश्यकताएं।

एवरेट ली के इस दृष्टिकोण ने, हालांकि रेवेनस्टीन द्वारा प्रतिपादित खंडित सिद्धांतों का समेकन किया, पर इसने प्रवास के कारणों और परिणामों को निर्दिष्ट नहीं किया, या विस्तृत तरीके से नहीं समझाया।

यह 1971 में था, जब ज़ेलिंस्की अपने प्रवासन सिद्धांत (Migration Theory) के साथ आए, जिसने प्रवासन सिद्धांतों में इस कमी को पूरा किया।

ज़ेलिंस्की की माइग्रेशन थ्योरी

ज़ेलिंस्की ने प्रवासन के अध्ययन के सभी आयामों की व्याख्या करते हुए ‘मोबिलिटी ट्रांज़िशन मॉडल (Mobility Transition Model)’ प्रतिपादित किया। उनका दृष्टिकोण जनसांख्यिकीय संक्रमण में प्रवास को जोड़ने का था, और बदलते समय के साथ प्रवासी मात्रा के बदलते रुझानों को समझने का।

उन्होंने अध्ययन को चार अलग-अलग स्तरों में विभाजित किया:

  • अंतरराष्ट्रीय (International)
  • अंतर-क्षेत्रीय (Intranational)
  • ग्रामीण - शहरी (Intranational)
  • शहरी - शहरी (Intranational)

सभी चार स्तरों पर, ज़ेलिंस्की ने जोर दिया है कि उच्च स्थिर अवस्था (High stationary stage), कम जीवन प्रत्याशा, स्थिर जनसंख्या प्रोफ़ाइल और जनसंख्या के पूर्ण स्थानीयकृत जीवन, न्यूनतम प्रवासी गति से संबंधित है।

यह जनसंख्या की वृद्धि, पड़ोसी स्थानों और प्रचलित संभावनाओं के बारे में जानकारी की वृद्धि के साथ-साथ परिवहन लिंक की वृद्धि है, जो प्रारंभिक विस्तार चरण (Early expanding stage) के बाद प्रवास की शुरुआत को चिह्नित करता है।

इस चरण से परे, प्रवासी गति परिवर्तनशील पैमानों पर परिवर्तनशील प्रवृत्तियों को प्रदर्शित करती है।

  • अंतर-क्षेत्रीय स्तर (intra-national level) पर, क्षेत्रीय प्रवास (regional migration) देर-विस्तार के चरण (late expanding stage) से कम होता है, मुख्यतः क्षेत्रीय विकास के प्रसार के कारण जो आर्थिक क्षमता में अंतर को कम करता है।
  • इसकी तुलना में, ग्रामीण-शहरी प्रवास (rural-urban migration) देर-विस्तार चरण के बाद भी उच्च स्तर की प्रवासी प्रवृत्ति बनाए रखता है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र लंबे समय के परिप्रेक्ष्य में फलदायी आर्थिक विकास का कार्यान्वयन करते हैं। ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की सफलता पर ही यह प्रवासी प्रवृत्ति निम्न स्थिर अवस्था (low stationary stage) के बाद गिरावट के संकेत दिखाती है।
  • शहरी-शहरी प्रवास (urban-urban migration) के मामले में, प्रवासी संचलन कभी भी गिरावट के संकेत नहीं दिखाता है, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के पैमाने का अंतर है जो कस्बे, शहर और मेगासिटी का सीमांकन करता है। पैमाने का यह अंतर ही है जो इस प्रवृत्ति को उत्पन्न करते हुए लगातार धारणात्मक आकर्षण बनाए रखता है।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, प्रवासी संचलन उसी तरह के रुझान दिखाते हैं जैसे अंतर-क्षेत्रीय प्रवास (inter-regional migration) के मामले में। जो अंतर है वह प्रवासियों की संख्या और प्रवासन में गिरावट के कारणों में है। क्षेत्रीय प्रवास (regional migration) की तुलना में, अंतर-राष्ट्रीय प्रवास (inter-national migration) में मौजूद ज्यादा दूरी के कारण प्रवासियों की संख्या कम होती है। प्रारंभिक विस्तार चरण (early expanding stage) के बाद प्रवासन में गिरावट आप्रवासन मानदंडों (immigration norms) के सख्त कार्यान्वयन से संबंधित है।

यह ज़ेलिंस्की का विश्लेषण ही है जिसे पूरे सांस्कृतिक इतिहास में वैश्विक प्रवासी प्रवृत्तियों की व्याख्या करने के लिए लागू किया गया है। इन प्रवृत्तियों को 2 प्रमुख अस्थायी श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जिसमें 1945 को संक्रमणकालीन वर्ष माना जाता है।

  • ऐतिहासिक प्रवासन (1945 से पहले)
  • आधुनिक प्रवासन (1945 के बाद)

ऐतिहासिक प्रवासन और आधुनिक प्रवासन का भेद, प्रवासियों की मात्रा के संदर्भ में है।

सख्त अप्रवासन मानदंडों की सामान्य अनुपस्थिति में जनसंख्या का जन संचलन क्षेत्रीय से वैश्विक आयामों को प्रकट करता है। ऐतिहासिक प्रवासन में निम्नलिखित आयामों के साथ प्रमुख उदाहरणों की विस्तृत श्रृंखला शामिल है:

  • स्वैच्छिक संचलन (Voluntary Movement)
  • मजदूर संचलन (Labourer Movement)
  • जबरन संचलन (Forced Movement)
स्वैच्छिक संचलन (Voluntary Movement)

नई दुनिया में प्रवासन (Migration to the new world) सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रवास का प्रतिनिधित्व करता है, जो ईसाई धर्म और कोकेशियान जाति (Caucasoid race) के प्रसार के साथ जुड़ा हुआ है। हालांकि स्वैच्छिक संचलन को बड़े पैमाने पर आर्थिक अभिविन्यासों द्वारा नियंत्रित किया गया था, परन्तु प्रचलित धक्का या पुल कारकों की निर्दिष्ट अनुपस्थिति में इसे एक अलग श्रेणी माना जाता है।

पश्चिमी यूरोप को अपने स्रोत क्षेत्र के रूप में और एंग्लो-अमेरिका, ओशिनिया (Oceania) को महत्वपूर्ण गंतव्य के रूप में शामिल करते हुए स्वैच्छिक प्रवास, अपने भौगोलिक मूल्य को सही ठहराता है।

मजदूर संचलन (Labourer Movement)

औद्योगिक क्रांति की विरासत के रूप में, पश्चिमी यूरोपीय देश आर्थिक रूप से प्रेरित औद्योगिक श्रमिक प्रवासन के लिए प्रमुख गंतव्य बन गए। इस तरह के प्रवासन के लिए स्रोत क्षेत्र पूर्वी और दक्षिणी यूरोपीय देश थे। इस प्रवासन ने इस महाद्वीप के सांस्कृतिक अंतर को काफी हद तक कम कर दिया।

आर्थिक रूप से प्रेरित श्रमिक प्रवासन की इस श्रेणी का एक वैश्विक आयाम है, जो उष्णकटिबंधीय और भूमध्यरेखीय द्वीपों (tropical and equatorial islands) में औपनिवेशिक बसने वालों द्वारा वृक्षारोपण/बागान कृषि (plantation agriculture) की शुरुआत की विरासत के रूप में है। सांस्कृतिक मिश्रण को प्रेरित करने हुए, पड़ोसी द्वीपों या दूर मुख्य भूमि से कृषि मजदूरों को आकर्षित करने वाले प्रमुख उदाहरणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • क्यूबा, त्रिनिदाद, टोबैगो (चीनी बागान)
  • पेम्बा/Pemba, ज़ांज़ीबार/Zanzibar, माफिया (लौंग का बागान)
  • श्रीलंका, मलेशिया (रबर बागान)
  • फिजी (महोगनी/Mahogany बागान)

इन दूर-दराज के गंतव्यों ने मुख्य भूमि से आबादी को आकर्षित किया (शोषणकारी आर्थिक शासन के अधीन), जो वर्तमान प्रोफ़ाइल में एक प्रमुख सांस्कृतिक विरासत पैदा कर रहा है।

जबरन संचलन (Forced Movement)

एक अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रवासन जो नस्लीय मिश्रण का कारण बना, विशेष रूप से एंग्लो-अमेरिकन देशों में, वह जबरन प्रवास या दास व्यापार है - इस प्रवासी संचलन में पश्चिमी अफ्रीका, नाइजीरिया, टोगो, बेनिन, घाना प्रमुख स्रोत क्षेत्रों के रूप में, और एंग्लो अमेरिका प्रमुख गंतव्य के रूप में शामिल थे।

बाजार में एक वस्तु के रूप में नेग्रोइड आबादी की बिक्री और खरीद ने उनकी सांस्कृतिक पहचान का काफी अहित किया। इन दासों को जंगल को साफ करने, जमीन को समतल करने और बुनियादी ढांचा तैयार करने के मूल उद्देश्य से एंग्लो-अमेरिका ले जाया गया था।

एंग्लो-अमेरिका में लगातार उपस्थित सामाजिक भेदभाव का पता उस क्षेत्र में अश्वेत आबादी की इस उत्पत्ति से लगाया जा सकता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, दुनिया का अधिक ठोस राजनीतिक मानचित्र सामने आया, एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में बड़ी संख्या में नए स्वतंत्र देशों के साथ| इससे जनसंख्या जन प्रवासन कुछ हद तक प्रतिबंधित हुआ - व्यक्तिवादी, आधुनिक, अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के वैश्विक आयाम स्थापित हुए।

इस चरण में भी संक्रमणकालीन अवधि का स्पष्ट सीमांकन है जहां जन प्रवासन की निरंतरता का पता लगाया जा सकता है। मुख्य रूप से ये प्रवासन औपनिवेशिक बसने वालों के पीछे हटने, और नई सीमांकित राजनीतिक इकाइयों में आबादी के स्थानांतरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दोनों श्रेणियों में राजनीतिक, सांस्कृतिक, अवधारणात्मक और वास्तविक पुश कारक शामिल थे। उदाहरण के लिए:

  • यूरोप से यहूदी आबादी का प्रवास (और इज़राइल का निर्माण)।
  • भारत के राजनीतिक विभाजन के कारण कई स्थानान्तरण हुए।
  • चीन द्वारा तिब्बत पर सशस्त्र कब्जा, जिससे तिब्बती लोगों का पलायन हुआ।

ये कुछ प्रमुख उदाहरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो आज तक अपने राजनीतिक महत्व को बनाए रखे हुए हैं।

1965 के बाद, संक्रमणकालीन वैश्विक चरण को अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के समकालीन चरण के रूप में रेखांकित किया गया है। पुश (Push) और पुल (Pull) दोनों कारकों द्वारा नियंत्रित इस आर्थिक प्रवासन में अस्थायी और स्थायी दोनों तरह के प्रवासन हावी हो सकते हैं।

पुल कारक (Pull Factors)

विकासशील देशों के स्रोत क्षेत्र और विकसित देशों के गंतव्य होने के सामान्य समीकरण ने 1980 के दशक के दौरान एक बड़ा बदलाव दर्ज किया, जब खाड़ी देश दक्षिण एशिया और उत्तरी अफ्रीका के लोगों के लिए मजबूत गंतव्य के रूप में विकसित हुए। इसने कट्टरपंथी इस्लामी क्षेत्र के वैश्विक प्रदर्शन को प्रेरित किया और इसका एक प्रमुख भौगोलिक प्रभाव पड़ा।

इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक अशांति (geo-politically induced turbulence) के कारणवश, 1990 के दशक से इसके आर्थिक आकर्षण में काफी गिरावट आई है।

पुश कारक (Push Factors)

समकालीन संदर्भ में वैश्विक प्रवासी प्रवृत्तियों में एक महत्वपूर्ण रूप शामिल है जो शरणार्थियों के प्रवासन से संबंधित है। यह पुश फैक्टर के प्रभाव में मानव आबादी के जन प्रवासन का प्रतिनिधित्व करता है। इस श्रेणी में व्यापक कारण शामिल हैं जिनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं:

  • राजनीतिक उथल-पुथल
  • प्राकृतिक आपदा
  • खाद्य सुरक्षा चिंता

शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UN commission on refugees) के अनुसार, जबरदस्ती कारकों द्वारा नियंत्रित इन मजबूत जन प्रवसनों को बड़े पैमाने पर सबसे निकटवर्ती भौगोलिक स्थान की तरफ मोड़ दिया जाता है। एक और परिभाषित विशेषता यह है कि शरणार्थी (अस्थायी अप्रवासी) जो राजनीतिक रूप से मान्यता प्राप्त हैं, अवैध अप्रवासियों की वास्तविक संख्या का केवल दसवां हिस्सा हैं। यही कारण है कि ये जन प्रवासन गंतव्य के भू-जनसांख्यिकीय भार में अत्यधिक वृद्धि करते हैं। इसके अलावा, वे भू-राजनीतिक संवेदनशीलता (geo-political sensitivity) को बढ़ाने का अतिरिक्त कारण बनते हैं।

  • वर्तमान परिदृश्य में अरब जगत में राजनीतिक उथल-पुथल से संबंधित जन प्रवासन एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
  • इस प्रकार के प्रवासी आंदोलन का उदाहरण बनाने वाला सबसे सुसंगत स्थान हालांकि अफ्रीका है, जहां भुखमरी और आदिवासी संघर्ष अंतर-महाद्वीपीय अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के प्रमुख कारण रहे हैं।
  • खाद्य सुरक्षा चिंताओं के कारण जन आंदोलन के प्रमुख स्रोत क्षेत्रों में सोमालिया, मॉरिटानिया, माली, नाइजर और चाड शामिल हैं, जिसमें मिस्र, लीबिया, नाइजीरिया, घाना, कोटे डी आइवर (आइवरी कोस्ट) खाद्य सुरक्षित देश गंतव्य हैं।
  • आदिवासी संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र - युगांडा, रवांडा, बुरुंडी, स्रोत क्षेत्र बनाते हैं। ये आबादी बड़े पैमाने पर तंजानिया, केन्या में गंतव्य के रूप में पलायन करती है।
  • सूडान के राजनीतिक विभाजन के साथ हुआ जन प्रवासन, विशेष रूप से नयी बनी अंतरराष्ट्रीय सीमा के इर्द-गिर्द, इस महाद्वीप में अंतर्राष्ट्रीय जन प्रवासन का एक और उदाहरण है।
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